( यहाँ NCERT की कक्षा 6 की इतिहास की पाठ्य पुस्तक ‘हमारे अतीत-1’ में संकलित ‘खुशहाल गांव व समृद्ध शहर’ अध्याय के महत्त्वपूर्ण तथ्यों को संकलित किया गया है | )
◾भारतीय उपमहाद्वीप में लोहे का प्रयोग लगभग 3000 साल पहले शुरू हुआ । महापाषाण क़ब्रों में लोहे के हथियार और औज़ार बड़ी संख्या में मिले हैं ।
🔹ऐसी महापाषाण क़ब्रें ब्रह्मगिरी ( Brahmgiri )( तमिलनाडु) तथा इनामगाँव ( Inamgaon ) ( महाराष्ट्र ) में मिली हैं । इनामगाँव भीमा की सहायक नदी ‘घोड़’ के किनारे स्थित है ।
▪लगभग 2500 साल पहले लोहे का प्रयोग बहुत अधिक बढ़ गया जिसका मुख्य कारण बड़े राज्यों का उत्थान व उद्योगों का विकास था । परिणामस्वरूप औज़ारों व हथियारों के निर्माण में लोहे की खपत बढ़ गयी । कृषि यंत्रों के निर्माण में भी लोहे का प्रयोग बढ़ गया ।
◾तमिल क्षेत्रों में बड़े भू-स्वामियों को ‘वेल्लाल‘ , साधारण हलवाहों को ‘उणवार‘ कहा जाता था । भूमिहीन मज़दूर व दास ‘कडैसियार ‘ व ‘अदिमई‘ कहलाते थे ।
◾देश के उत्तरी हिस्से में गाँव का प्रधान ‘ग्राम भोजक’ ( Gram Bhojak ) कहलाता था । इस पद पर प्रायः गाँव का सबसे बड़ा भू-स्वामी होता था । यह पद आनुवांशिक था ।
🔹गाँव में ‘ग्राम भोजक’ के अलावा जो स्वतंत्र कृषक होते थे उन्हें ‘गृहपति’ ( Grihpati ) कहते थे ।
◾अनेक शहरों में वलय-कूप मिले हैं । ये वलय-कूप गुसलखाने , नाली या कूड़ेदान के लिये प्रयुक्त होते थे । ऐसा ही एक वलय-कूप दिल्ली में मिला है ।
▪भरुच ( Bharuch ) गुजरात में स्थित एक बंदरगाह था । एक यूनानी नाविक ने इसका वर्णन किया है उसने भरुच को ‘बेरिगाजा’ ( Berigaja ) कहा है ।
🔹भरुच बंदरगाह के माध्यम से सोना , चाँदी , तांबा , टीन , सीसा व शराब का आयात होता था ।
🔹 भरुच बंदरगाह से सूती वस्त्र , रेशमी वस्त्र व हिमालय की जड़ी-बूटियों का निर्यात किया जाता था ।
◾मथुरा 2500 साल पहले उत्तर भारत का एक महत्त्वपूर्ण नगर था । यह बेहतरीन मूर्तियाँ बनाने का केंद्र था । लगभग 2000 साल पहले यह नगर कुषाणों की राजधानी भी रहा ।
🔹मथुरा कृष्ण-भक्ति का एक महत्त्वपूर्ण केंद्र था । यहाँ बौद्ध-विहार व जैन-मंदिर भी हैं ।
🔹मथुरा में प्रस्तर-खंडों तथा मूर्तियों पर अनेक अभिलेख मिले हैं । ये एक प्रकार के दान-पत्र हैं जिन पर सुनारों , लुहारों, बुनकरों , टोकरी बनाने वालों , माला बनाने वालों तथा इत्र बनाने वालों का उल्लेख मिलता है ।
🔹मिट्टी के बहुत ही सुंदर बर्तन मिले हैं जिन्हें उत्तरी काले चमकीले पात्र ( NBPW-Northern Black Polished Wares) कहा गया है ।
🔹उत्तर में वाराणसी तथा दक्षिण में मदुरै वस्त्र-निर्माण के प्रमुख केंद्र थे ।
🔹अनेक शिल्पकार तथा व्यापारी अपने-अपने संघ बनाते थे जिन्हें ‘श्रेणी’ कहते थे ।
◾लगभग 2200 साल पहले से 1900 साल पहले अरिकामेडु ( पुदुच्चेरी ) में एक पत्तन था । यहाँ ईंटों से बना एक ढाँचा मिला है जो संभवत: गोदाम रहा होगा ।
🔹यहाँ भूमध्य सागरीय क्षेत्र के ‘एंफोरा’ ( Amphora ) जैसे पात्र मिले हैं । इनमें शराब या तेल जैसे तरल पदार्थ रखे जा सकते थे । इनके दोनों तरफ़ पकड़ने के लिये हत्थे लगे थे ।
🔹यहाँ ‘एरेटाइन‘ जैसे मुहर लगे लाल चमकदार बर्तन भी मिले हैं । इनका नाम इटली के एक शहर के नाम पर पड़ा है ।
🔹कुछ ऐसे बर्तन भी मिले हैं जिनका डिज़ाइन तो रोम का है किंतु उनका निर्माण यहीं किया गया है ।
◼️ लगभग 2000 साल पहले रोम एक बहुत बड़े साम्राज्य की राजधानी थी ।
🔹ऑगस्टस ( Augustus ) रोम का एक शक्तिशाली शासक था । उसने रोम में रंगमहल ( Amphitheater ) तथा जलवाही सेतु ( Aqueduct ) बनवाये ।
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